
इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के आरोपों के बाद पूरे देश में न्यायपालिका की निष्पक्षता पर बहस छिड़ गई है। इस प्रकरण के सामने आने के बाद भारत के Chief Justice (CJI) संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगा, लेकिन उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया। इसके बाद CJI ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायाधीशों की एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसकी रिपोर्ट अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेज दी गई है। यह कदम न्यायपालिका की पारदर्शिता को दर्शाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
तीन सदस्यीय जांच पैनल ने पूरी रिपोर्ट की जांच, CJI ने भेजा औपचारिक उत्तर
Chief Justice संजीव खन्ना द्वारा गठित इस जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को शामिल किया गया, जिन्होंने इन-हाउस प्रक्रिया के तहत सभी तथ्यों और आरोपों की निष्पक्षता से जांच की। जस्टिस यशवंत वर्मा ने जहां अपनी सफाई में इन आरोपों को निराधार बताया, वहीं जांच समिति ने रिपोर्ट के माध्यम से अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए। इसके बाद CJI ने रिपोर्ट और वर्मा के उत्तर को संलग्न करते हुए भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पदों – राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री – को आधिकारिक रूप से भेजा है।
इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य था कि न्यायपालिका की साख पर उठ रहे सवालों का संवैधानिक और संस्थागत उत्तर दिया जाए, जिससे देश की न्याय व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बना रहे। इस रिपोर्ट को संवैधानिक मर्यादा और न्यायिक गरिमा के अंतर्गत विशेष गोपनीयता के साथ तैयार किया गया है।
गुरुवार को जारी हुई आधिकारिक रिलीज, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे गए दस्तावेज
गुरुवार को Supreme Court की ओर से एक आधिकारिक प्रेस रिलीज में बताया गया कि CJI द्वारा इन-हाउस प्रक्रिया के तहत की गई कार्रवाई के तहत दिनांक 03.05.2025 की जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस यशवंत वर्मा से प्राप्त प्रतिक्रिया दिनांक 06.05.2025 को समेकित रूप से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी गई है। इसमें साफ कहा गया कि न्यायपालिका अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करेगी।
रिलीज में यह भी स्पष्ट किया गया कि यह संपूर्ण कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 124 और संबंधित न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुरूप की गई है। इन-हाउस मैकेनिज्म के तहत की गई यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के संस्थागत आचरण को दर्शाने के साथ-साथ न्यायाधीशों की जवाबदेही को भी रेखांकित करती है।
जस्टिस वर्मा ने आरोपों को किया खारिज, इस्तीफे से किया इनकार
जस्टिस यशवंत वर्मा ने नकदी मिलने के आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि उनके खिलाफ एक सोची-समझी साजिश रची जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने कार्यकाल के दौरान पूरी निष्ठा और पारदर्शिता के साथ न्याय करते आए हैं और किसी भी भ्रष्ट आचरण में संलिप्त नहीं रहे हैं। इसी कारण उन्होंने CJI द्वारा मांगा गया इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और आरोपों का विस्तृत उत्तर प्रस्तुत किया।
CJI द्वारा गठित जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के जवाब का भी सम्यक मूल्यांकन किया और फिर अपनी अंतिम रिपोर्ट तैयार की, जिसे अब देश के शीर्ष नेतृत्व को सौंपा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस प्रक्रिया बनी सुर्खियों का केंद्र
Supreme Court की यह इन-हाउस प्रक्रिया एक बार फिर न्यायिक संस्थानों के भीतर जवाबदेही की बहस को केंद्र में ले आई है। इस प्रक्रिया को न्यायिक स्वतंत्रता के साथ-साथ अनुशासन और ईमानदारी बनाए रखने का प्रयास माना जा रहा है। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि सर्वोच्च न्यायपालिका स्वयं के भीतर किसी भी आरोप या संदेह को गंभीरता से लेती है और उसे पारदर्शी ढंग से निपटाने की क्षमता रखती है।
यह मामला इस ओर भी संकेत करता है कि भविष्य में किसी भी न्यायाधीश पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच संभव है और न्यायपालिका इसके लिए पूरी तरह सक्षम और तैयार है।
क्या यह मामला न्यायपालिका की जवाबदेही का नया अध्याय है?
इलाहाबाद हाई कोर्ट के Chief Justice यशवंत वर्मा पर लगे आरोप, उसके बाद की न्यायिक प्रक्रिया, जांच रिपोर्ट और CJI का जवाब – यह सब मिलकर भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अहम अध्याय बन सकते हैं। जहां एक ओर यह पूरा मामला न्यायपालिका की आंतरिक पारदर्शिता को उजागर करता है, वहीं दूसरी ओर यह दिखाता है कि न्यायिक संस्थाएं अपने भीतर भी कठोर निर्णय लेने से नहीं कतरातीं।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इस रिपोर्ट पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और क्या आगे की कोई संवैधानिक या कानूनी कार्रवाई होती है।